एकाग्रता कैसे बढ़ाये? एकाग्रता पर स्वामी विवेकानंद के विचार | Power of Concentration|

एकाग्रता समस्त ज्ञान का सार है इसके बिना कुछ भी नहीं किया जा सकता है. साधारण मनुष्य अपने विचार का 90% अंक नष्ट कर देता है और इसलिए वह लगातार भरी भूले करता रहता है. प्रशिक्षित मनुष्य अथवा मन कभी कोई भूल नहीं करता है.

मेरे विचार से शिक्षा का सार मन को एकाग्र प्राप्त करना है,तथ्यों का संकलन नहीं।यदि मुझे फिर से शिक्षा शुरू करनी पड़े और मेरा उस पर वश हो तो मैं तथ्यों का संकलन कभी नहीं करू. मैं मन की एकाग्रता और अनाशक्ति का सामर्थ बढ़ाता और उपकरण के पूर्णतः तैयारी होने पर उससे इच्छा अनुसार तथ्यों का संकलन करता।

एक विचार लो उसी विचार को अपना जीवन बनाओ, उसी के बारे में चिंतन करो और उसी को अपने सपने देखो और आखिरी उसी में अपना जीवन बिता दो. अपना मष्तिक केवल उसी के विचार से मदमस्त रहे उसके आलावा आपके मष्तिष्क में ओर किसी का विचार न आने पाए.

यही सिद्ध होने का उपाय है और इसी उपाय से बड़े-बड़े धर्म वीरो की उत्पत्ति हुई है.शेष सब को बाते करने वाले मशीन मात्र है यदि हम खुद को किर्तार्थ करना चाहे और किसी भला करना चाहे तो हमें गहराई तक जाना होगा।

ज्ञान की प्राप्ति के लिए एक मात्र उपाय है एकाग्रता। किसी भी कार्य में सफलता इसी एकाग्रता का परिणाम है. कला ,संगीत में उच्च उपलब्धिया इसी एकाग्रता का परिणाम है.

जिस कार्य में जितनी एकाग्रता होगी, वह काम उतनी अच्छे से सम्पन होगा। द्वार के पास में जाकर आवाज देने से या खत-खटाने से द्वार खुल जाता है इसी प्रकार इस उपाय से प्रकृति के के भंडार का द्वार खुल जाता है, जिससे विश्व प्रकाश धारा प्रवाहित होती है.

राज योग में केवल इसी विषय की आलोचना है. अपनी वर्तमान शारीरिक अवस्था में हम बड़े ही अन्य मंशक हो रहे है. हमारा मन सैकड़ो ओर दौड़ कर शक्ति को नष्ट कर रहा है.

जब मैं व्यर्थ की चिंताओं की छोड़कर ज्ञान लाभ के उद्देश्य से मन को स्थिर करने की चेस्टा करता हु तब न जाने कहा से मस्तिष्क में हज़ारो बाधाएं आ जाती है.

हज़ारो चिंताए मन में एक साथ आकर मन को चंचल कर देती है. किस प्रकार इनको नियत्रण में रखकर मन को वसीभूत किया जाये, यही राज योग्य का एक आलोचक विषय है.

मनुष्य और पशु के बिच का अंतर् उनके अंदर के मन की एकाग्रता की शक्ति पर है. किसी भी कार्य पूरी सफलता इसी एकाग्रता का परिणाम है. एकाग्रता के बारे में प्रत्येक व्यक्ति कुछ जानता ही है. हम इसके परिणाम को नित्य देखते है, कला ,संगीत में उच्च उपलब्धिया मन एकग्रता की पहचान है.

एक पशु में एकाग्रता की शक्ति बहुत कम होती है. जो लोह पशुओ को कुछ सिखाते है उन्हें पता होता है की पशुओ को जो बात लगातार सिखाई जाती है वह उसे भूलते जाते है. वे एक में एक वस्तु पर देर तक चित्त को एकाग्र नहीं रख सकता है. मनुष्य और पशु में यही अंतर् है.

मनुष्य में पशु की अपेछा एकाग्रता शक्ति अधिक होती है. एकग्रता की शक्ति के कारण एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से भिन्न होता है.

हम लोगो लोगो के लिए ज्ञान लाभ का एक ही उपाय है. निमन्तं व्यक्ति से लेकर उच्च योगी तक को उसी ऊपर का अविलम्बन करना पड़ता है , उपाय है एकाग्रता

रसायन वैद जब अपने प्रयोगशाला में काम करते है तब वे अपनी मन की सारि शक्ति को एकत्रित कर लेते है या केन्दीय भुत कर लेते है.उस केंद्रीय भुत शक्ति का मूल पदार्थो के ऊपर प्रयोग करते ही वे सब विश्लेषित हो जाते है.

इस प्रकार वह ज्ञान लाभ करने में सफल होते है. ज्योतिर्विद भी अपनी समग्र मनन शक्ति को एक ही भुत कर या केन्दीय भुत कर दूस्वीक्षण यंत्र के माध्यम से वास्तु के ऊपर प्रयोग करते है, जिससे घूमने वाले तारे और गृहमंडल अपने रहष्य उत्घातीत करते है, चाहे विद्वान अध्यापक या माधवी क्षात्र हो, चाहे अन्य कोई भी हो.

यदि किसी विषय को जानने की चेस्टा कर रहा है तो उसे उपर्युक्त प्रथा से ही काम लेना पड़ेगा। ये एकाग्रता जितनी अथिक होगी मनुष्य उतनी ही अधिक ज्ञान लाभ करेंगे।

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